स्वदेशी इंटरनेट ब्राउज़र बनाने के लिए स्टार्टअप्स को सरकार का न्योता, 3 करोड़ की फंडिंग

वेब या इंटरनेट ब्राउजर की बात करें तो लोग सबसे ज्यादा गूगल क्रोम (Google Chrome) और एप्पल के सफारी (Safari) ब्राउज़र का इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट ब्राउज़र के क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों का दबदबा है। हो सकता है अब यह दबदबा खत्म हो, क्योंकि भारत सरकार अब खुद का वेब ब्राउजर (Web Browser) लाने की तैयारी कर रही है।

इसके लिए भारत सरकार ने एक ओपन चैलेंज प्रतियोगिता शुरू की है जिसका नाम है इंडियन वेब ब्राउजर डेवलपमेंट चैलेंज (IWBDC)। IWBDC में हिस्सा लेने के लिए कोई भी स्टार्टअप अप्लाई कर सकता है। सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ एडवांस्ड कम्प्यूटिंग (CDAC), बेंगलुरु को इस प्रतियोगिता के लिए एंकर एजेंसी नियुक्त किया गया है। सरकार ने इसके लिए 3 करोड़ रुपए की फंडिंग का भी ऐलान किया है।

क्यों चाहिए स्वदेशी ब्राउज़र

तेजी से डिजिटाइजेशन की और बढ़ते भारत में सिक्योरिटी और प्राइवेसी बहुत अहम मुद्दा हैं। गूगल क्रोम और मोज़िला फायरफॉक्स जैसे ब्राउजर का भारत सरकार के साथ, सिक्योरिटी और प्राइवेसी को लेकर तालमेल नहीं है। ये ब्राउजर अपने रूट स्टोर में भारतीय प्रमाणन एजेंसियों को शामिल नहीं करते। रूट स्टोर में ऑपरेटिंग सिस्टम्स (OS) और एप्लीकेशंस की जानकारी होती है।

आसान नहीं है प्रयोग में लाना

अभी Internet Browser के क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों का बोलबाला है। भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल गूगल क्रोम ब्राउज़र का किया जाता है जिसकी हिस्सेदारी करीब 88 फ़ीसदी है। इसके बाद एप्पल सफारी, माइक्रोसॉफ्ट एज (Edge) और सैमसंग का नाम आता है।

चुनौती यह है कि गूगल क्रोम एंड्राइड (Android) मोबाइल में, सफारी सभी एप्पल (Apple) मोबाइल में, माइक्रोसॉफ्ट एज सभी विंडोज (Wndows) ऑपरेटिंग सिस्टम वाले डिवाइसेज में और सैमसंग ब्राउजर सभी सैमसंग मोबाइल्स में पहले से इंस्टॉल आता है। ऐसे में लोग स्वदेशी ब्राउज़र इंस्टॉल क्यों करें? इसकी बड़ी वजह होनी चाहिए। दूसरी बात यह की लोग इनके फीचर्स से अच्छे से वाकिफ हैं, तो अगर नये ब्राउजर को अपनी जगह बनानी है, तो कुछ बहुत ही बेहतरीन करना होगा।


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