रेलवे में जो पहले गार्ड कहलाते थे। वो गार्ड अब ट्रेन मैनेजर बन गए हैं। केवल उनका नाम ही नहीं बदला बल्कि काम का बोझ भी बढ़ गया है। अब उन्हें कई तरह की जिम्मेवारियों का अतिरिक्त भार दे दिया गया है।
ट्रेन को ग्रीन सिग्नल देने से पहले अब उन्हें यह भी देखना होगा कि ट्रेन की छत पर कोई चढ़ा तो नहीं। अगर ट्रेन की छत पर किसी को चढ़ा पाया तो आरपीएफ और जीआरपी की सहायता से उन्हें नीचे उतारेंगे। उसके बाद ही ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे। नई व्यवस्था को बहाल करने के लिए रेलवे ने भारतीय रेल चालित लाइनें साधारण नियम 1976 के नियम 4.35 का संशोधन किया है।
ये सभी जिम्मेदारियां होंगी
लोको पायलट यानी चालक, ट्रेन स्टार्ट करने और उसे ले जाने के पेपर यानी प्रस्थान अधिकार के बिना स्टेशन से ट्रेन नहीं ले जाएंगे। ट्रेन के प्रस्थान से पहले उन्हे यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी सिग्नल और जहां आवश्यक है वहां हैंड सिग्नल दे दिए गए हैं। सामने या लाइन पर कोई प्रत्यक्ष अवरोध नहीं हो और गार्ड ने प्रस्थान के लिए सिग्नल दे दिया है। गार्ड को भी ग्रीन सिग्नल देने से पहले यह देखना होगा कि ट्रेन के आगे सब कुछ ठीक है या नहीं। गार्ड ट्रेन के प्रस्थान के लिए तब तक सिग्नल नहीं देंगे जब तक देख नहीं लेंगे कि कोई यात्री किसी ऐसे डिब्बे में चढ़ तो नहीं गया, जो नियम विरुद्ध है। या फिर ट्रेन की छत पर यात्रा तो नहीं कर रहा है। अगर ऐसा पाया गया तो गार्ड, चालक और सहायक चालक उस व्यक्ति को हटाने के लिए जीआरपी, आरपीएफ और स्टेशन के कर्मचारियों से मदद ले सकते हैं।
हाल ही में बदला गया है पदनाम
रेलवे ने गार्ड का पदनाम हाल ही में बदला है। असिस्टेंट गार्ड को असिस्टेंट ट्रेन मैनेजर कहा जाएगा, गुड्स गार्ड को गुड्स ट्रेन मैनेजर कहा जाएगा, सीनियर गुड्स गार्ड को सीनियर गुड्स ट्रेन मैनेजर कर दिया गया है, सीनियर पैसेंजर गार्ड को सीनियर पैसेंजर ट्रेन मैनेजर कहा जाएगा, मेल एक्सप्रेस गार्ड को मेल एक्सप्रेस ट्रेन मैनेजर कहा जाएगा।